
हेल्लो! इस ब्लॉग में कही गई सारी बाते मेरी अपनी है और आप मुझसे कितना सहमत है या सहमत नहीं है वो आपका विवेक है।
मैं शुरू में ही बता दू के ये मेरा राजनीती पर पहला ब्लॉग है। मेरा राजनीती से बहुत ज्यादा जुड़ाव नहीं रहा है लेकिन इन दिनों राजनीती में चल रही उठा पटक से कोई भी अछूता नहीं रहा है। कही बाप बेटे की महाभारत है तो कही किसी के स्वर्ग सिधारने के बाद कुर्सी की लड़ाई है। कही चाय वाले की बात है तो कही बच्चो की कसम, तो कही किसीको इतालियन कह कर मज़ाक बनाया जाता है। भारत में नेताओ पर जितने चुटकुले बनते है उतने शायद ही किसी और देश में बनते हो। वैसे अब ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका हमसे ज्यादा चुटकुले बना रहा है☺। भारत में इसका एक बड़ा कारण यहाँ की बेरोज़गार जनता भी है। यूनिवर्सिटीज( विश्वविद्यालय ) से पास होके जितने लोग निकलते है उसकी आधी प्रतिशत आबादी ही रोज़गार हो पाती है। विश्वविद्यालय की राजनीती को असल राजनीती का पहला पड़ाव कहा जा सकता है। यही से छात्र नेता परिपक़्व होकर अपना या देश का नाम रोशन करते है। ज्यादातर अपना ही नाम चमकाने में लगे रहते है। देश तो वैसे भी बहुत बड़ा है और देश का नाम चमकाने के लिए कोई न कोई तो आ ही जायेगा। संसद में शपथ लेके बैठना वैसा ही है जैसे लोटा लेके खेत में बैठना। बहुत ही कम ऐसे राजनेता होंगे जो शपथ को अपने जीवन में आत्मसात करते होंगे । शपथ और शादी के फेरे में कहे गए शब्द शायद ही किसी को याद हो। जिसको शपथ याद है उसको मेरा प्रणाम और जिसे फेरो में पंडित जी के शब्द याद है उसे सर झुका के शत शत नमन😉। ये दौर राजनीती में चरम पर है। क्योकि इस दौर में भारत का प्रधान मंत्री वो व्यक्ति है जिस पर 2002 के गुजरात दंगे भड़काने का आरोप था। एक नोसिखिया किस तरह बड़े बड़े राजनेताओ के सिर का दर्द बन सकता है ये भी हमें इसी दौर में देखने को मिला। ये दोनों ही अपने आप में बेमेल और बेमिसाल है। ना तो कभी कोई प्रधान मंत्री ऐसा बना जिस पर इतना बड़ा आपराधिक दोष लगा हो और ना ही कोई राजनितिक नौसिखिया पहले कभी दिल्ली की सत्ता पर बैठा था। एक बूढे व्यक्ति की ताकत कैसे सत्ता में बैठे बड़े बड़े धुरंधरो को घुटने पे ला सकती है ये भी आज की पीढ़ी ने देखा और उसका साथ दिया। अरविन्द केजरीवाल और नरेंद्र मोदी इस ब्लॉग के एहम किरदार है। इन दोनों के ही बिना इस ज़माने की भारतीय राजनीती अधूरी दिखाई पड़ती है। अरविन्द केजरीवाल जहा एक जन आंदोलन की उपज है वही नरेंद्र मोदी सालो से आरएसएस और राजनीती का हिस्सा रहे है।
India Against Corruption और अरविन्द केजरीवाल
"अन्ना तुम आगे बड़ो हम तुम्हारे साथ है", "भारत माता की जय" जैसे नारो से रामलीला मैदान गूँज उठा था। अन्ना हज़ारे के 2011 के आंदोलन को कौन भूल सकता है। आज़ादी के बाद शायद पहली बार ऐसा हुआ था जब लोगो ने किसी पर इतना विश्वास दिखाया थ। बहुत बड़ा आंदोलन था, इस आंदोलन का पूर्ण मकसद था, जनलोकपाल। इस मकसद ने 2011 में India Against Corruption को जन्म दिया। अन्ना हज़ारे और अरविन्द केजरीवाल के आलावा बड़े बड़े सामाजिक कार्य कर्ता, मेधा पाटकर, प्रशांत भूषण, शांति भूषण, न. संतोष हेगड़े, किरन बेदी और जयप्रकाश नारायण ने इस आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। अंदरूनी कलह के चलते India Against Corruption बारिश में पैदा हुए कीट पतंगों की तरह बहुत जल्दी ख़तम हो गयी । इस तरह India Against Corruption दो भागो में बंट गयी । एक ने आम आदमी पार्टी का रूप लिया और एक Team Anna बन गयी।
किसी ने नहीं सोचा था के इस आंदोलन से किसी राजनितिक पार्टी का उदय होने वाला है। आंदोलन के मंच से अरविन्द केजरीवाल ने अपने भाषण में कई बार कहा था के वो किसी राजनीतिं पार्टी का हिस्सा नहीं बनेंगे, वो एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह ही अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। लेकिन केजरीवाल भी इसी धरती से है तो थोड़ा बहुत इधर उधर चलता है 😜। आम आदमी पार्टी(AAP ) से कई प्रसिद्ध हस्तिया जुडी, कुमार विश्वास, मनीष सिसोदिया, योगेंद्र यादव, अरुणा रॉय, भगवंत मान, गुल पनाग, अलका लाम्बा, शाज़िया इल्मी कुछ नाम है । इन बड़े नामो का भरपूर फायदा AAP को मिला। अरविन्द केजरीवाल जब भी टीवी पर आते या भाषण देते तो यही लगता जैसे पूरी दुनिया में सिर्फ वो ही ईमानदार और साफ़ छवि के इंसान है बाकि सब चोर है । मैं भी अरविन्द केजरीवाल का मुरीद था और मैंने भी AAP को 2013 के चुनाव में बढ़चढ़ के सपोर्ट किया। AAP ऐतिहासिक जीत दर्ज करके दिल्ली की सत्ता पैर बैठ गयी। लेकिन जल्दी ही ये साफ़ हो गया की सत्ता का नाश सिर चढ़ के बोलता है । फिर चाहे वो एक आम आदमी ही क्यों न हो। जल्द ही साफ़ छवि वाले लोग AAP से अलग होने लगे। केजरीवाल का बड़बोला पन उन्ही की पार्टी के लोगो को खलने लगा। बहुत से विडियो मैसेज न्यूज़ और इन्टरनेट में virul हुऐ जिसमे उन्होंने दिल्ली पुलिस के लिए ठुल्ला, या अपने साथियो के लिए हरामी, कमीना, जैसी अबध्र भाषा का इस्तेमाल किया। उन्होंने PM को coward, psycopath तक कह डाला। लोगो ने तो केजरीवाल की तुलना हिटलर तक से की । जो भी उनकी बात से सहमत नहीं दीखता उसको बहार का रास्ता दिखा दिया जाता।केजरीवाल ने भारत द्वारा पाकिस्तान पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक पर भी सवाल खड़े किये। जिससे उनकी निंदा पुरे देश में हुयी। कुछ दूसरी राजनितिक पार्टीओ ने भी उनके सुर में सुर मिलाया। मैं मानता हूँ के केजरीवाल पर भ्रस्टाचार या कोई और गंभीर आरोप नहीं है। और वो चाहे तो राजनीती में नए मानक तेय कर सकते है। लेकिन वो तभी हो सकता है जब वो मोदी मोदी चिलाना छोड़ कर काम पर ध्यान दें ।
मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक
7 Oct, 2001 नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने गुजरात के 14 वें मुख्यमंत्री की शपथ ली। राजनीती में आने से पहले ही नरेंद्र मोदी ने अपने जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव देखे थे। जीवन के इन्ही अनुभवो ने नरेंद्र मोदी को एक सशक्त और सहनशील इंसान बनने में मदद की। अपने राजनितिक करियर की पहली सीढ़ी चढ़ते ही नरेंद्र मोदी को एक बड़ी घटना का सामना करना पड़ा, 2002 के गुजरात दंगे । यहाँ इस घटना का जिक्र करना बहुत जरूरी है । 27 Feb 2002 में अयोध्या से वापिस अति एक ट्रैन को कुछ उपद्रवियों ने गोधरा के पास आग के हवाले कर दिया । कई लोग ज़िंदा जला दिए गए। सरकारी सूत्रों में 60 लोगो को मृत घोषित पाया गया। इस ट्रैन में ज्यादातर हिन्दू तीर्थ यात्री थे जो की अयोध्या में आयोजित धार्मिक समारोह से वापस आ रहे थे। ये समारोह ध्वस्त बाबरी मस्जिद के पास आयोजित किया गया था। इस घटना के बाद उस समय मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने एक सार्वजनिक बयान दिया। जिसमे उन्होंने कहा की ये एक आतंकी हमला था जो की स्थानीय मुस्लिम लोगो ने नियोजित किया था। अगले ही दिन विश्व हिन्दू परिषद् ने गुजरात बंद का आह्वान कर दिया। गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। कई बुधिजिवियो ने गुजरात सरकार द्वारा स्तिथि को सही तरीके से न संभाल पाने का दोषी माना। मोदी सरकार ने 26 बड़े शहरो में कर्फ्यू लगा दिया । देखते ही गोली मारने के निर्देश के साथ आर्मी को गली गली में तैनात कर दिया गया। 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने कई केसेस को फिर से खोल दिया और उनके लिए SIT (Special Investigation Team) गठित की। लेकिन किसी ने भी नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं पाया। 2002 में राज्य विधानसभा चुनाव हुए और गुजरात दंगो के बावजूद BJP को 182 में से 127 सीटे मिली। 1995 में हुए विधानसभा चुनाव में BJP को मिली जीत के लिए भी मोदी की नीतियों को श्रेय मिला। अगर आप लोग भी मोदी को कट्टर हिंदूवादी होने का तमगा देते है तो मैं आपको बता दू के मोदी ने गांधीनगर में 200 अवैध मंदिरो को गिराने का आर्डर दिया था। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए ही नरेंद्र मोदी ने संघ परिवार से सलाह लेना या प्रशासनिक निर्णयो की जानकारी देना भी बंद कर दिया था। मोदी मुसलमानो के करीब बने रहे जिस वजह से वो आलोचनाओ का शिकार भी होते रहे। 2007 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावो में फिर BJP ने भारी जीत दर्ज की और उसका श्रेय भी मोदी को गया। BJP को 182 में से 122 सीटें मिली। मोदी ने privatisation को बढ़ावा दिया जोकि RSS की नीतियों के बिलकुल उलट था । लेकिन मोदी ने किसी की परवाह नहीं की। मोदी के काम करने की लगन को देखते हुए BJP ने 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी को प्रधानमंत्री के लिए फाइनल कर दिया। बहुत से BJP नेताओ ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर नाखुशी जाहिर की। मोदी ने 2 constituencies, वाराणसी और वडोदरा से चुनाव लड़ा। और वाराणसी से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अरविन्द केजरीवाल को हरा कर दोनों constituencies से जीत हांसिल की।
26 मई 2014 को राष्ट्रपति भवन से मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण की। एक प्रधानमंत्री पद की गरिमा और शक्ति का लोगो को एहसास होने लगा। केजरीवाल अपने भाषणों में पहले से ज्यादा आग उगलने लगा। केजरीवाल के भाषणों के केंद्र में मोदी ही रहता। जुलाई 2016 तक मोदी ने 42 देशो में 51 यात्राएं की। प्रधानमंत्री रहते हुए मोदी ने कई ऐसे निर्णय लिए जिन्हें कुछ लोगो ने सराहा तो कुछ लोगो ने नकार दिय। लेकिन ये भी साफ़ है के ज्यादातर लोग आज भी मोदी के साथ खड़े है और चाहते है के मोदी जिस दिशा में काम कर रहे है करते रहे। आगे आने वाला समय बताएगा के मोदी के लिए गए निर्णेय कितने सही थे और कितने गलत।
मैं इतना ही जानता हूँ के भारत को मोदी के रूप में एक सशक्त और निर्णय लेने वाला प्रधानमंत्री मिला है। लेकिन एक घोडा तभी सही दिशा में दौड़ सकता है जब उसकी लगाम कसी रहे। इस लगाम का काम केजरीवाल अच्छे तरीके से कर सकते है। हमें मोदी और केजरीवाल दोनों की जरूरत है। बशर्ते दोनों अपना काम सही तरीके से करते रहे।
किशन मोहन
No comments:
Post a Comment